सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

हम पंछी उन्मुक्त गगन के


हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे ।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाऍंगे भूखे-प्यासे
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से ।
स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले ।
ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने
लाल किरण-सी चोंच खोल
चुगते तारक-अनार के दाने ।
होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती सॉंसों की डोरी ।
नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो
लेकिन पंख दिए हैं तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालो ।

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

शंखनाद

मृत्युंजय  इस  घट में  अपना,
कालकूट भर दे तू आज|
ओ मंगलमय पूर्ण सदाशिव,
रौद्र रूप धर ले तू आज||


हम अंधे भी देख साखें कुछ,
धधका दे प्रलय ज्वाला,
जिसमे पड़कर  भस्म शेष हों,
जो है जर्जर निस्सार|


मदमत्तों का मद उतर दे,
दुर्धर तेरा दंड प्रहार|
चिर निद्रित भी जाग उठे हम,
कर दे तू ऐसा हुंकार||


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ओ कठोर तेरी कठोरता,
कर दे हम को कुलिश कठोर|
विचलित ना कर सके कोई भी,
झंझा की दारुण झकझोर||


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