मृत्युंजय इस घट में अपना,
कालकूट भर दे तू आज|
ओ मंगलमय पूर्ण सदाशिव,
रौद्र रूप धर ले तू आज||
हम अंधे भी देख साखें कुछ,
धधका दे प्रलय ज्वाला,
जिसमे पड़कर भस्म शेष हों,
जो है जर्जर निस्सार|
मदमत्तों का मद उतर दे,
दुर्धर तेरा दंड प्रहार|
चिर निद्रित भी जाग उठे हम,
कर दे तू ऐसा हुंकार||
....
ओ कठोर तेरी कठोरता,
कर दे हम को कुलिश कठोर|
विचलित ना कर सके कोई भी,
झंझा की दारुण झकझोर||
....
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें