शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

शंखनाद

मृत्युंजय  इस  घट में  अपना,
कालकूट भर दे तू आज|
ओ मंगलमय पूर्ण सदाशिव,
रौद्र रूप धर ले तू आज||


हम अंधे भी देख साखें कुछ,
धधका दे प्रलय ज्वाला,
जिसमे पड़कर  भस्म शेष हों,
जो है जर्जर निस्सार|


मदमत्तों का मद उतर दे,
दुर्धर तेरा दंड प्रहार|
चिर निद्रित भी जाग उठे हम,
कर दे तू ऐसा हुंकार||


....
ओ कठोर तेरी कठोरता,
कर दे हम को कुलिश कठोर|
विचलित ना कर सके कोई भी,
झंझा की दारुण झकझोर||


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